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Showing posts from July, 2020

INDEPENDENCE DAY POEM (1857-1947 Everything in a Poem) Hindi

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सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,  देखना है ज़ोर कितना बाजुए कातिल में है।   बस गए बहरूपियो में, जकड़ गए लोहे की बेड़ियों मे। दब गए विदेशियो में, लकड़ गए बंधे बंधे कैदियों से।  रह गए सीमाओं में, बंद दरवाज़े खिड़कियां जैसे नदी के ठहराव में।  कुछ करने की लालसा थी देशवासियों में, ठाना तो था पैरों से चलकर जलती चिंगारियो में।  पर कोड़े पीठ पीछे, मार मार ढाली मजदूरियों से।  ईट महलों विदेशियों के, भरते थे नोटों की महफिलों से।  अपने आंगन में अपने भूखे और विदेशी पेट भरे सोते थे महलों में।  ऐसी लकीरें थी हाथों में हमारे अंग्रेजों के शासन में। इन आहसासों को हमे नहीं भूलना चाहिए, इस प्रताड़िता को, इस भेद भावनाओं को, हमें इस तरह मारना, मजदूरी कराना, मना करने पर सूली पर चढ़ा देना, जिंदा लाश बना देना, यह सब बर्दाश्त करना लिखा था हमारी भी किस्मत में। पर हुआ कुछ अलग, सुनिए  गुलामी की दसख्ते खटकी हर घर दरवाजे पर।  कुछ शिकार हुए कुछ शहीद हुए, इस जंजीरों की लगामो से।  पर सैनिकों के विद्रोह से, मेरठ में क्रोध से।  उठा एक संग्राम, 1857 का पहला स...

Amazing Quotes About Life and Thoughts | True Quotes | Hindi Thoughts to...

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Poem on Women : Ek ladaki aur ek ahsaasएक लड़की और एक अहसास

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एक लड़की और एक अहसास एक दूर किसी गली में , एक लड़की का घर था। नन्ही-नन्ही आंखो में , प्यारा सा बचपन था। छोटी सी हाईट लिए , ख्वाब मानो जैसे माउंट एवरेस्ट सा। हल्की सी मुस्कान लिए , उड़ना मानो जैसे बटरफ्लाई सा। इंतज़ार करती वो हर पल उस लम्हे का , जब मौका मिलेगा उसे अपने पैरो पे खड़ा होने का। स्कूल मे स्टूडेंट्स के बीच थी वो लाखो मे एक , हीरे सा ज्ञान और चंदा सा रूप एक।   जब खत्म हुआ ख्वाब को पूरा करने का वेट , और मंज़िल की ओर बड़ाने थे उसको स्टेप। दुनिया बोली- अरे , इसकी सादी करा दो क्या करेगी इतना पढ़ लिख कर! रिस्तेदार , पड़ोसी बोले- अरे , इसको अपने साथ रखो क्या करेगी कही बाहर जाकर ! फस गई निगेटिविटी के लूप मे , मेंटल स्ट्रेस से तंग हो कर। खो गई सोसाईटी के भिन्न रूप में , अपने ख्वाबो से जंग ले कर । अपने ख्वाबो के मोती को एक माला में पिरोये , उसने खुद का एक ऐसा जहाँ बनाया। जाने की ना थी किसी को इज़ाज़त वहाँ , ऐसे कुछ सपनो का महल बनाया।   टूटी हिम्मत से बिखर गई पर फिर जगी उसकी आस। तू अपना काम कर , ठोकरो से प्यार कर , एक ज़ज़्बा था उसके पास। ह...

Poem : संभव है बार-बार आँधियों से डर जाओगे (Andhiyo se dar jaoge)

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Watch video👇 संभव  है बार-बार  आँधियों  से डर जाओगे । संभव  है बार-बार  आँधियों  से डर जाओगे। टूट सैकड़ों बार-बार खामोशियोंं से भर जाओगे। फिर से सोच एक बार, डगर को तू पार कर। क्षणिक दर्द से क्या हार, अम्बर पर तू राज़ कर। कर दरार पत्थरों में, जीत अब की बार जाओगे। संभव  है बार-बार  आँधियों  से डर जाओगे। रोकेगी है बार-बार महफिलों की चाहत तुझे। खीचेगी है बार‌-बार झिलमिलों की जगमगाहट तुझे। तू हठ ना अपनी छोड़ना, पथ ना अपना मोड़ना। तू पथिक है ये ना भूलना, भौतिक सुखो मेंं खुद को ना खोजना। कर्म कर तू बार-बार, वादियों में लहर जाओगे। संभव  है बार-बार  आँधियों  से डर जाओगे। मिलेगी सहज ही मंज़िल नहीं, मीलों तुझे चलना पड़ेगा। दिखेगी सुंदर महज ही बंजर भूमि नहीं, फूलो सा तुझे खिलना पड़ेगा। मिलते नहीं मस्तियों से मोती गहरे पानियों में, चलती भी है कस्तियां तूफ़ानी भरी सवारियो से। बन नदी का जल कोई, धीरे-धीरे ही सही। बह कर तू बार-बार, पहाड़ को चटकाओगे। संभव  है बार-बार  आँधियों  से डर जाओगे। ठहर जाओगे निराश होकर, बैठ जाओगे जो आस में। नही ...

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